न जाने वो क्या था जो मुझे कहना था
मगर न कह सकी जो मेरे दिल में था
अब तक मरमर कर जीती रही हूं मै
अब कुछ कहती नहीं खामोश रहती हूं मैं
ना कोई शिकवा है ना कोई गिला है मुझे
अब जो भी है उसे सहेज कर रखना है मुझे
दिल पर जो बोझ है उसे उतार देना चाहती हूं
जिंदगी भर बंधी रही रस्मो रिवाज के दायरे में
कुछ ना कह सकी में खामोश रह गयी में
न जाने वह क्या था जो मुझे कहना था
अब भूल गई हूं मैं सब कुछ जो मुझे कहना था..
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