क्यों अपनी परेशानी बाटने से सब टोक ते है
क्या कोई परेशान होकर बार बार
वही चीज़ बोले तोह उसे रोक दिया जाता है
क्या हम किसी की तकलीफ तब तक नहीं सुन सकते
जब तक उसे अच्छा न लगे
दूसरो की तकलीफ इतनी मामूली क्यों लगती है
क्यों बर्दाश्त नहीं होती वही बाते सुनने में
अगर बस सुन पाना हम से होता नहीं
जो उसे जी रहा हो उसीकी तकलीफ
फिर भी मामूली क्यों लगती है
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