कोसिस मेरी ख़ामोशी मेरी
सब कुछ जेसे चीख रही
की आखिर कब तक तू सेह लेगी
कोई नहीं देने वाला कोई मैडल तुझे
अगर फिर भी तू जीत गयी
ज़िन्दगी जेसे हारने में तुली हुई है
फिर भी में लड़ने में लगी हुई हु
कभी खुद से कभी आपने भगवन से
अब क्या है जो में मांगू
खुशियां तोह आप मोह माया बोल ले गए
अब न इंसानो से उम्मीद है
न भरोसा है मुझे
बस जी रही हु में
क्यों जीना है मुझे मर मर कर
समझ नहीं पा रही हु में
कोई कितने दिन लड़े
सालो साल बस मर मर क्यों जिए
मेरी खुशियों ने क्या बिगाड़ा किसी का
जो उस्सको आप ले चले
लेनी थी छीन कर तोह थोड़ी देर
और जीने देते
खुशियां देते प्यार देते
इस तरह न तड़पाते
इस भाबुक मन को क्यों दिया
जिसको संभालना है मुश्किल
सपने दिखते हो
हकीकत करके फिर छीन लेते हो
आँखे तरस जाती है
मन उदास हो जाता है
आखिर क्यों सपने सजाते हो
जो तक़दीर में कभी लिखा ही न हो
आप ही की ज़िन्दगी है
दर्द इतना भी न दो की
मरने का मन रोज़ करे
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