Sunday, October 6, 2024

Durga Aarti !!

 दुर्गा आरती




 जय अम्बे गौरी मैया जय श्यामा गौरी  ।

तुमको निशिदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिवरी ॥टेक॥

 मांग सिंदूर बिराजत , टीको मृगमद को ।

उज्ज्वल से दोउ नैना, चंद्रबदन नीको ॥जय॥


 कनक समान कलेवर ,रक्ताम्बर राजै।

रक्तपुष्प गल माला , कंठन पर साजै ॥जय॥


 केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्परधारी ।

सुर-नर मुनिजन सेवत, तिनके दुःखहारी ॥जय॥


 कानन कुण्डल शोभित , नासाग्रे मोती ।

कोटिक चंद्र दिवाकर, राजत समज्योति ॥जय॥


 शुम्भ निशुम्भ बिडारे,  महिषासुर घाती ।

धूम्र विलोचन नैना , निशिदिन मदमाती ॥जय॥


चण्ड मुंड सहारे , शोणित बीज हरे I 

मधु - कइटाभ दाऊ मारे , सुर भयहीन करेl l(जय)


 ब्राह्मणी रुद्राणी तुम कमला रानी l 

आगम - निगम - बखानी , तुम शिव पटरानी  lI (जय)


 चौंसठ योगिनि मंगल गावैं ,नृत्य करत भैरू।

बाजत ताल मृदंगा ,अरू बाजत डमरू ॥जय॥


तुम ही जग की माता , तुम ही हो भरता l 

भक्तां की दुःख हारता , सुख सम्पति करता ll(जय) 


 भुजा चार अति शोभित वर - मुद्रा धरी  l

मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी ॥जय॥


 कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती ।

श्री मालकेतु में राजत ,कोटि रतन ज्योति ॥जय॥


 श्री अम्बेजी की आरती ,जो कोई नर गावै ।

कहत शिवानंद स्वामी, सुख-सम्पत्ति पावै ॥जय॥

 



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