यह नज़र भी उसी को ढूँढती है,
जो कभी उसका था ही नहीं।
दिल की गहराई से निकली चाहत,
जिसकी कोई मंज़िल ही नहीं।
तन्हा रातों का वो मुसाफ़िर,
जिसकी कोई हमदम ही नहीं।
ख्वाबों में भी जिसकी परछाई,
हकीकत में जिसकी आहट ही नहीं।
यह नज़र भी उसी को ढूँढती है,
जो कभी उसका था ही नहीं।
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