दिल में जलन, आँखों में नमी,
जीना हुआ है मुश्किल, कमी।
युवावस्था में ही छोड़ा जीवन,
क्यों नहीं मिलती मुझे ये शांति निंद्रा?
दूसरों की खुशी, मेरा कर्तव्य,
अपनी चाहतें, बस एक व्यर्थ कल्पना।
बंधनों में बंधी, मैं उड़ नहीं पाती,
मन ही मन में, मैं रोती, हँसती।
कृतज्ञ होना चाहिए, ये मैं जानती,
परंतु मन उदास, आँखें नम सी रहतीं।
स्वयं के लिए कुछ करना, बस एक ख्वाब,
दुःख की गहराइयों में, खोई रहती हूँ अब।
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