तुमने याद किया, क्या यह गुमान है,
या सचमुच की कोई बात है?
दिल और दिमाग का कैसा ये खेल है,
उलझी हुई हर रात है।
क्यूँ सोचती हूँ, क्यूँ मैं न जानूँ,
शायद अभी तक भुला न पायी हूँ।
वही सब कुछ है, जो पहले था,
जैसे पहले थी, वैसी रही हूँ।
एक आवाज़ भीतर आती है,
सुनती उसे बस मैं ही अकेली हूँ।
कहती है - "हँसते रहना तुम हमेशा,
उदास कभी न होना।"
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