यूं तो कई ख्वाब थे एक छोटे से दिल में,
उम्मीद से भरे नैनों से मैंने जिंदगी से कुछ मांगा था।
पर ये नसीब भी अजीब है, हर बार उसने ऐसे घाव दिए,
कि उस छोटे से दिल में एक बड़ा सा जख्म बन गया।
फिर भी, रोते-बिलखते मैंने उम्मीद से आगे बढ़ना सही समझा,
पर किस्मत मेरी ऐसी निकली, हर बार एक नया घाव मिलता रहा।
अब तो उस छोटे से दिल में हजारों घाव बन चुके हैं,
जब लहूलुहान होकर चीख भी निकलती है,
तो पीछे से आवाज आती है, 'अरे! ये तो पुराना घाव है।'
मन करता है पलटकर कहूं, 'ऐ जिंदगी, तू बता,
तूने मेरे जख्मों को कब सूखने दिया?
जख्मों के बदले जख्म देकर तूने मुझे छलनी कर दिया।'
अब किस बात को भूल जाऊं और क्या उम्मीद बांधूं,
जब सब कुछ धुंधला सा है और कुछ नजर नहीं आता?
ऐ जिंदगी, क्या मैं इतनी बुरी हूं कि तुझे मेरा सुकून अच्छा नहीं लगता?
बस कर ऐ जिंदगी, अब और लड़ने की मुझमें ताकत नहीं बची।
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