अभी तो आधा ही साल बीता है,
हादसों ने हर रोज़ हमें है सताया है
कभी मासूम घूमने गए, जान गँवा बैठे,
कहीं खुशियों के रंग में मातम छाया।
दफ्तर जाते हुए लोग फिसल कर गिरे,
कोई परदेस जाते-जाते दुनिया से विदा हुआ।
छात्रावास में पढ़ते-पढ़ते किसी ने दम तोड़ा,
हर हादसे ने दिल को गहरा दर्द पहुँचाया।
ये सब देख हर कोई मायूस हुआ,
पर कुछ ऐसे भी हैं जिन्हें मौत का बेसब्री से इंतजार है।
साँसें चलती हैं, पर जीवन थम सा गया है,
वो बस जिए चले जा रहे हैं।
मेरी बातें शायद अजीब लगें, पर ज़रा सब्र से सोचो:
वो बूढ़े, बीमार माँ-बाप, जो लाचार हैं,
अपने काम भी नहीं कर पाते, उन्हें मौत का इंतज़ार है।
जिनके छोटे बच्चे लाइलाज बीमारियों से पीड़ित हैं,
वो भी बस मौत की राह ताक रहे हैं।
आखिर कब तक कोई जीवन से मोहब्बत करे,
गर ज़िंदगी हर पल इम्तिहान लेती रहे?
ऐसे लोग दुआ करते हैं, "बस आ ओ मौत, हमें ले जा।"
पर देखो इस माया को, किसे कब ले जाए?
मरना तो सबको है, पर कोई हादसे का शिकार है,
तो कोई उम्मीद लगाए इंतज़ार में
है, कि मौत जल्दी आ जाए।
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